Description
प्रेम की तुलना परमात्मा तक से की जाती रही है इसे आत्मा का स्वभाव कहा गया है….
सर्वाधिक सुखद अनुभूति, परिपूर्णता का आभास…
पर आजकल हमारे पास सभी और कामों के लिए वक़्त है पर नही है कुछ तो वो है प्रेम के लिए समय……
दो दिन सब्जी न लाओ तो तीसरे दिन तो लानी ही पड़ती है,
पर प्रेम ……….????
कितनी भी भागदौड़ हो चाय की चुस्कियों के बीच अखबार की सुर्खियां पढ़ लेने का समय निकल ही आता है,
और उसी भाग दौड़ में…भाग दौड़ के नाम पर प्रेम उपेक्षित अपनी बारी का इंतज़ार करते फुरसत में आराम से किया जाने वाला काम बनकर रह जाता है,
हज़ारों और दुनियावी चीजों की तरह क्या प्रेम भी औपचारिकता में बदलता जा रहा है,
क्या सब्जी लेने से भी कम जरूरी काम हो गया है प्रेम….??
जीवन ऊर्जा प्रेम के अतिरिक्त कुछ और नही…जीवन में सांस लेने जितना अनिवार्य है प्रेम…
इस अथाह विषय की अनुभूतियों को दिल से महसूस करने के लिए आप सभी आमंत्रित हैं “एक रोज मैं तुम” की यात्रा पर…..वस्ल और हिज्र, मिलन और विरह, रात और ख्वाब, कल्पना और वास्तविकता….हाँ यही सब है “एक रोज मैं और तुम”
Reviews
There are no reviews yet.