Description
प्रस्तुत पुस्तक “छत्तीसगढ़ की पिछड़ी जनजातियाँ परम्परा एवं नवाचार” में राज्य के पिछड़ी जनजातियों के परम्परावाद और नवाचारवाद के बीच द्वन्द एवं दुरूहताओं का विस्तृत विवरण एवं विश्लेषण किया गया है।
प्रदेश के विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों विकास अभिकरणों के माध्यम से अब स्थायी बस्तियों में बसने लगे है। शासन के प्रयास से इनके बसाहटों में सडक, स्कूल, हेण्डपम्प बिजली आदि की सुविधाए विकसित किये जा रहे है, किन्तु परम्परावादी एवं रूढ़िवादी होने के कारण आज भी इनका परिवार समस्या ग्रस्त है। विशेष योजना के तहत इनके पढ़े लिखे लोग शासकीय नौकरी करने लगे है।
पिछले वर्ष पी एम पी वी टी जी विकास मिशन प्रारंभ किया गया है । इसके माध्यम से विशेष पिछड़ी जनजातियों के जीवन शैली में बदलाव की प्रबल संभावना है।
इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में छत्तीसगढ़ के जनजातियों का सामान्य परिचय, द्वितीय अध्याय में विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों का विकास कार्यक्रम, तृतीय अध्याय में बैगा जनजाति, चतुर्थ अध्याय में बिरहोर जनजाति, पंचम अध्याय में पहाड़ी कोरवा जनजाति, षष्ठम अध्याय में कमार जनजाति और सप्तम अध्याय में अबूझमाड़िया जनजाति की सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक एवं संस्कृति व्यवस्था का वर्णन प्राथमिक एवं द्वितीय के आंकड़ों के आधार पर किया गया है। आशा है यह पुस्तक जनजातीय पर रूची रखने वाले अध्येताओं, योजनाकारों, शोधकर्ताओं एवं विद्यार्थियों के लिए उपयोगी साबित होगी।