Description
रेत पर लिखा दर्द मेरी 113 कविताओं का संग्रह है,जिसमें कोरोना महामारी से बिलखते परिवार की पीड़ा के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग से आहत प्रकृति और जीव – जंतुओं की पीड़ा को मैंने लिखने का प्रयास किया है|
समाज में व्याप्त बुराइयाँ यथा दहेज के आगोश में घूंघट की आड़ में छिपकर रोती बेटी,साक्षर होकर भी मानवता विहीन बच्चों के कारण वृद्धाश्रम में कलपते वृद्ध माता-पिता,बुढ़ापे में दो जून की रोटी के लिए बोझ ढ़ोते पिता,असफल होने पर आत्महत्या करते बच्चे की पीड़ा देख आत्मा कराह उठती है,आखिर कौन जिम्मेदार है इन सब परिस्थितियों के लिए|हमारी शिक्षा पद्धति,पद लिप्सा या बिखरता नैतिक शिक्षा विहीन परिवार|यह प्रश्न हमेशा कौंधता है|
मौत मुँह बाये खड़ी दिखाई देती है,तब मैं लिखती हूँ-
मौत के जेब से चुराये हैं
मैंने जिंदगी के कुछ
लम्हें,
मोतियों की तरह
कीमती हैं शबनमी
बूंँदें हैं ये लम्हें||
वीरों की शहादत,शरहद पर डटे सैनिकों की पीड़ा,जीवन के पड़ाव में आते सुख- दुःख से उबर कर संभावनाओं का सूरज बनने की प्रेरणा देता है रेत पर लिखा दर्द|
मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है पाठकों को मेरी रचनाएँ पसंद आयेगी व जीवन को संजीदगी के साथ जीने को संबल प्रदान करेगी|
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